मथुरा और वृंदावन में होली

होली महोत्सव मथुरा और वृंदावन में एक बहुत प्रसिद्ध त्यौहार है। भारत के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले कुछ अति उत्साही लोग मथुरा और वृंदावन में विशेष रूप से होली उत्सव को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। मथुरा और वृंदावन महान भूमि हैं जहां, भगवान कृष्ण ने जन्म लिया और बहुत सारी गतिविधियों की। होली उनमें से एक है। इतिहास के अनुसार, यह माना जाता है कि होली त्योहारोत्सव राधा और कृष्ण के समय से शुरू किया गया था। राधा और कृष्ण शैली में होली उत्सव के लिए दोनों स्थान बहुत प्रसिद्ध हैं।

मथुरा में लोग मजाक-उल्लास की बहुत सारी गतिविधियों के साथ होली का जश्न मनाते है। होली का त्योहार उनके लिए प्रेम और भक्ति का महत्व रखता है, जहां अनुभव करने और देखने के लिए बहुत सारी प्रेम लीलाऍ मिलती है। भारत के हर कोने से लोगों की एक बड़ी भीड़ के साथ यह उत्सव पूरे एक सप्ताह तक चलता है। वृंदावन में बांके-बिहारी मंदिर है जहां यह भव्य समारोह मनाया जाता है। मथुरा के पास होली का जश्न मनाने के लिए एक और जगह है गुलाल-कुंड जो की ब्रज में है, यह गोवर्धन पर्वत के पास एक झील है। होली के त्यौहार का आनंद लेने के लिये बड़े स्तर पर एक कृष्ण-लीला नाटक का आयोजन किया जाता है।

बरसाने में होली या लठमार होली

बरसाना में लोग हर साल लट्ठमार होली मनाते हैं, जो बहुत ही रोचक है। निकटतम क्षेत्रों से लोग बरसाने और नंदगांव में होली उत्सव को देखने के लिए आते हैं। बरसाना उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में एक शहर है। लट्ठमार होली, छड़ी के साथ एक होली उत्सव है जिसमें महिलाऍ छड़ी से पुरुषों को मारती है। यह माना जाता है कि, छोटे कृष्ण होली के दिन राधा को देखने के लिए बरसाने आये थे, जहां उन्होंने उन्हें और उनकी सखियों को छेड़ा और बदले में वह भी उनके द्वारा पीछा किये गये थे। तब से, बरसाने और नंदगांव में लोग छड़ियों के प्रयोग से होली मनाते हैं जो लट्ठमार होली कही जाती है।

आस-पास के क्षेत्रों से हजारों लोग बरसाने में राधा रानी मंदिर में लट्ठमार होली का जश्न मनाने के लिए एक साथ मिलते है। वे होली के गीत भी गाते हैं और श्री राधे और श्री कृष्ण का बयान करते है। प्रत्येक वर्ष नंदगांव के गोप या चरवाहें बरसाने की गोपियों या महिला चरवाहों के साथ होली खेलते है और बरसाने के गोप या चरवाहें नंदगांव की गोपियों या महिला चरवाहों के साथ होली खेलते है। कुछ सामूहिक गीत पुरुषों द्वारा महिलाओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए गाये जाते है; बदले में महिलाऍ आक्रामक हो जाती हैं और लाठी के साथ पुरुषों को मारती है। यहाँ पर कोल्ड ड्रिंक या भांग के रूप में ठंडई पीने की परंपरा है।

होली महोत्सव का इतिहास और महत्व

होली का त्यौहार अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताओं की वजह से बहुत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है। इसका उल्लेख भारत की पवित्र पुस्तकों,जैसे पुराण, दसकुमार चरित, संस्कृत नाटक, रत्नावली और भी बहुत सारी पुस्तकों में किया गया है। होली के इस अनुष्ठान पर लोग सड़कों, पार्कों, सामुदायिक केंद्र, और मंदिरों के आस-पास के क्षेत्रों में होलिका दहन की रस्म के लिए लकड़ी और अन्य ज्वलनशील सामग्री के ढेर बनाने शुरू कर देते है।

लोग घर पर साफ- सफाई, धुलाई, गुझिया, मिठाई, मठ्ठी, मालपुआ, चिप्स आदि और बहुत सारी चीजों की तैयारी शुरू कर देते है। होली पूरे भारत में हिंदुओं के लिए एक बहुत बड़ा त्यौहार है, जो ईसा मसीह से भी पहले कई सदियों से मौजूद है। इससे पहले होली का त्यौहार विवाहित महिलाओं द्वारा पूर्णिमा की पूजा द्वारा उनके परिवार के अच्छे के लिये मनाया जाता था। प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस त्यौहार का जश्न मनाने के पीछे कई किंवदंतियों रही हैं।

होली हिंदुओं के लिए एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्यौहार है। होली शब्द “होलिका” से उत्पन्न है। होली का त्यौहार विशेष रूप से भारत के लोगों द्वारा मनाया जाता है जिसके पीछे बड़ा कारण है।

होली के क्षेत्र वार उत्सव के अनुसार, इस त्यौहार के अपने स्वयं के पौराणिक महत्व है, जिसमें सांस्कृतिक, धार्मिक और जैविक महत्व शामिल है। होली महोत्सव का पौराणिक महत्व ऐतिहासिक किंवदंतियों के अंतर्गत आता है जो इस त्यौहार के साथ जुड़ी है।

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